Classical Shayari: उन के देखे से जो आ जाती है मुँह पर रौनक़ ग़ज़ल हुस्न-ए-मह गरचे ब-हंगाम-ए-कमाल अच्छा है उस से मेरा मह-ए-ख़ुर्शीद-जमाल अच्छा है बोसा...
वो नही मिला तो मलाल क्या, जो गुज़र गया सो गुज़र गया
सोचते और जागते साँसों का इक दरिया हूँ मैं अपने गुम-गश्ता किनारों के लिए बहता हूँ मैं