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Qateel Shifai Poetry: वो शख़्स कि मैं जिस से मोहब्बत नहीं करता

वो शख़्स कि मैं जिस से मोहब्बत नहीं करता

हँसता है मुझे देख के नफ़रत

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Qateel Shifai Poetry: वो शख़्स कि मैं जिस से मोहब्बत नहीं करता

Ghazal

वो शख़्स कि मैं जिस से मोहब्बत नहीं करता

हँसता है मुझे देख के नफ़रत नहीं करता

पकड़ा ही गया हूँ तो मुझे दार पे खींचो

सच्चा हूँ मगर अपनी वकालत नहीं करता

क्यूँ बख़्श दिया मुझ से गुनहगार को मौला

मुंसिफ़ तो किसी से भी रिआ’यत नहीं करता

घर वालों को ग़फ़लत पे सभी कोस रहे हैं

चोरों को मगर कोई मलामत नहीं करता

किस क़ौम के दिल में नहीं जज़्बात-ए-बराहीम

किस मुल्क पे नमरूद हुकूमत नहीं करता

देते हैं उजाले मिरे सज्दों की गवाही

मैं छुप के अँधेरे में इबादत नहीं करता

भूला नहीं मैं आज भी आदाब-ए-जवानी

मैं आज भी औरों को नसीहत नहीं करता

इंसान ये समझें कि यहाँ दफ़्न ख़ुदा है

मैं ऐसे मज़ारों की ज़ियारत नहीं करता

दुनिया में ‘क़तील’ उस सा मुनाफ़िक़ नहीं कोई

जो ज़ुल्म तो सहता है बग़ावत नहीं करता

Poet: क़तील शिफ़ाई

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