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साहित्य

My Life Shayari: अपनी हैरत गंवा चुका हूँ मैं, अमरदीप सिंह ‘अमर’

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My Life Shayari: अपनी हैरत गंवा चुका हूँ मैं, अमरदीप सिंह 'अमर'

My Life Shayari: अपनी हैरत गंवा चुका हूँ मैं, अमरदीप सिंह ‘अमर’

शब  की  बाहों  में  है  निढाल  कोई

काश  पूछे  न  हाल-चाल  कोई

बे-ज़रूरत  सी  कितनी  ख़ुशियाँ  हैं

मन  मुताबिक  नहीं  मलाल  कोई

आप  के  तंज़  हो  गए  ज़ाया

ख़ू में  आया  नहीं  उबाल  कोई

अपनी  हैरत  गंवा  चुका  हूँ  मैं

चाहे  जितना  करे  कमाल  कोई

बढ़  गया  ख़ुद  से  इख़्तिलाफ़  अब  तो

पहले  फिर  भी  था  हम-ख़्याल  कोई

मैं  न  शायर  हुआ  न  साहिब-ए-ज़र

मुझ  पे  आया  नहीं  जमाल  कोई

फंस  गया  हूँ  बुरी  तरह  से  बहुत

ज़िंदगी  रास्ता  निकाल  कोई

Poet: Amardeep Singh Amar

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