Connect with us

सोशल मीडिया पोएट्री

Meri khamoshi shayari : पत्थर मारा खेंच के मारा पत्थर में ख़ामोशी थी।

Published

on

घर की फ़ज़ा को चुप सी लगी थी दफ़्तर में ख़ामोशी थी।

जो दर खोला ऐसा खोला दर दर में ख़ामोशी थी।

कल की रात ऐसी थी ज्यूँ सौतन से सौतन बात  करे,

शोर बहुत था नींद का लेकिन बिस्तर में ख़ामोशी थी।

भूली बिसरी आंखें उसकीं ज्यूँ लफ्ज़ नहीं धुन याद रहे,

होंठ पे फूल रिबन चस्पां था पैकर में ख़ामोशी थी।

रस्ते को लग जाये ज़ुबाँ और बोल पड़े ये सन्नाटा,

पत्थर मारा खेंच के मारा पत्थर में ख़ामोशी थी।

Poet: Vikas Rana

WhatsApp Channel Join Now

Copyright © 2024 Topnewser.com