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साहित्य

Classical Shayari: ये दिल ये पागल दिल मिरा क्यूँ बुझ गया आवारगी

ये दिल ये पागल दिल मिरा क्यूँ बुझ गया आवारगी

इस दश्त में इक शहर था वो क्या

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Classical Shayari

Classical Shayari: ये दिल ये पागल दिल मिरा क्यूँ बुझ गया आवारगी

ये दिल ये पागल दिल मिरा क्यूँ बुझ गया आवारगी

इस दश्त में इक शहर था वो क्या हुआ आवारगी

कल शब मुझे बे-शक्ल की आवाज़ ने चौंका दिया

मैं ने कहा तू कौन है उस ने कहा आवारगी

लोगो भला इस शहर में कैसे जिएँगे हम जहाँ

हो जुर्म तन्हा सोचना लेकिन सज़ा आवारगी

ये दर्द की तन्हाइयाँ ये दश्त का वीराँ सफ़र

हम लोग तो उक्ता गए अपनी सुना आवारगी

Poet: मोहसिन नक़वी

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