भटके जहां को राह दिखा जाओ फिर से बुद्ध! इन्सानियत के वास्ते आ जाओ फिर से बुद्ध!
My Life Shayari: अपनी हैरत गंवा चुका हूँ मैं, अमरदीप सिंह ‘अमर’ शब की बाहों में है निढाल कोई काश पूछे न हाल-चाल कोई बे-ज़रूरत सी ...
घर की फ़ज़ा को चुप सी लगी थी दफ़्तर में ख़ामोशी थी। जो दर खोला ऐसा खोला दर दर में ख़ामोशी थी। कल की रात ऐसी...
पहले सबको ज़ख़्म दिखाना पड़ता है फिर पलकों से नमक उठाना पड़ता है ख़ुद से ख़ुद तक दूरी तो है मामूली बीच में लेकिन एक ज़माना...