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Ahmed Faraz Poetry: करेगा कौन तेरी बेवफ़ाइयों का गिला

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Ahmed Faraz Poetry: करेगा कौन तेरी बेवफ़ाइयों का गिला

Ahmed Faraz Poetry: करेगा कौन तेरी बेवफ़ाइयों का गिला

Ahmed Faraz Poetry:

ग़ज़ल

बुझी नज़र तो करिश्मे भी रोज़ो शब के गये

के अब तलक नही पलटे हैं लोग कब के गये

करेगा कौन तेरी बेवफ़ाइयों का गिला

यही है रस्मे ज़माना तो हम भी अब के गये

मगर किसी ने हमे हमसफ़र नही जाना

ये और बात के हम साथ साथ सब के गये

अब आये हो तो यहाँ क्या है देखने के लिये

ये शहर कब से है वीरां वो लोग कब के गये

शिकस्ता दिल थे मगर हौसला न हारा था

शिकस्ता दिल हैं मगर हौसले भी अब के गये

तुम अपनी शम्ऐ-तमन्ना को रो रहे हो “फ़राज़”

इन आँधियों मे तो प्यारे चराग़ सब के गये

अहमद फ़राज़

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