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mirza ghalib poetry in hindi: मैं गया वकत नहीं हूं कि फिर आ भी न सकूं

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मेहरबां हो के बुला लो मुझे चाहो जिस वकत

मैं गया वकत नहीं हूं कि फिर भी सकूं

जोफ़ में तानाअग़यार का शिकवा क्या है

बात कुछ सर तो नहीं है कि उठा भी सकूं

ज़हर मिलता ही नहीं मुझको सितमगर वरना

क्या कसम है तिरे मिलने की कि खा भी सकूं

Poet: Mirza ghalib

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