सोशल मीडिया पोएट्री
Mukesh Aalam Poetry: अफ़्वाहों को उड़ने की आज़ादी है
पहले सबको ज़ख़्म दिखाना पड़ता है
फिर पलकों से नमक उठाना पड़ता है
ख़ुद से ख़ुद तक दूरी तो है मामूली
बीच में लेकिन एक ज़माना पड़ता है
शौक़ से ऊपर जा लेकिन सीढ़ी तो न फैंक
इक दिन वापिस भी तो आना पड़ता है
अफ़्वाहों को उड़ने की आज़ादी है
सच को रुकते-रुकते जाना पड़ता है
फूंक मार कर धुंध नहीं छटती ‘आलम’
आख़िर सूरज को ही आना पड़ता है
Poet: Mukesh Aalam
Ludhiana, India
Continue Reading
WhatsApp Channel
Join Now